श्रम का महत्व Dignity Of Labour-Abraham Lincoln के जीवन का प्रेरक किस्सा



बात उस समय की है जब अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति नही बने थे। उस समय जाति पाती का भेदभावपूर्ण व्यवहार होता था।  अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!

सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा,मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!

सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि - कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि।* 

अमरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।बड़े दुर्भाग्य की बात है भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है उसे छोटी  जाति का समझा जाता है,उसे अछूत समझा जाता है।जो यहाँ सफाई करता है, उसे नीच  समझा जाता है और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा।

यह सोच बदलना बहुत जरूरी है।कोई भी आदमी जन्म से या ऐसे काम करने से छोटा या बड़ा नही बन जाता। बड़े बनते हैं अपनी सोच,सिद्धांत, कर्म और व्यवहार से। जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे। जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा बना रहेगा। कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता। छोटी या बड़ी तो इसके साथ जुड़ी हुई हमारी मानसिकता है इसलिए इसे बदलें।और इसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी क्योंकि हम बदलेंगे युग बदलेगा। हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।।  इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विस्वास है।

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